चोटी की पकड़–40
रामचरण ने कहा, "हुजूर, उसी गाँव में मिलूँगा। देखें मुसलमान, हिंदुओं में दम है या नहीं। है ! मालकिन का अन्न-जल छूटा हुआ है। पहले हुजूर के इकबाल से खिलाऊँ-पिलाऊँ।"
"तो कितना?"
"हुजूर कुछ अंदाजा?"
"पाँच - "
रामचरण ने झुककर सलाम किया। "वहीं कैंप में हुजूर के सामने-"
कहकर चला।
"पाँच है-समझे?"
"हुजूर, खिलाना-पिलाना है। पक्का रहा।" कहकर रामचरण सलाम करके भगा।
दो-तीन दिन में डी. एस. पी. समझे, रामचरण की बात सही थी। बकरीद के दिन आ गए। गोकुशी रोकी। जोश बढ़ा। रामचरण से मिलने की आशा से थानेदार और सिपाहियों को घटनास्थल पर बढ़ा दिया। इधर दुर्घटना हो गई। उनकी एक ज्ञानेंद्रिय विकृत कर दी गई।
यह सब राजा के कर्मचारी और सिपाहियों का काम था, पर कुछ पता न चला। पुलिस बहुत लज्जित हुई। बात जिले-भर में फैली। डी. एस. पी. की नौकरी गई।
दस